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नोएडा का टि्वन टावर मात्र 9 सेकेंड का खेल |

नोएडा का टि्वन टावर मात्र 9 सेकेंड का खेल |

 सालों चली कानूनी कार्रवाई के बाद  टि्वन टावर मात्र 9 सेकेंड आज नोएडा स्थित  (32 मंजिला इमारतें) ट्विन टावर को ध्वस्त कर दिया गया ।

 कई  सालो  चली कानूनी कार्रवाई के बाद  28/08/2022  दोपहर में ठीक 2:30  नोएडा मे स्थित  ट्विन टावर को ध्वस्त कर दिया गया  जो की  नौ सेंकेंड के भीतर 40 मंजिला  इमार्तो ने मलवे का  रुप ले लिया ।

 

आखिर ट्विन टावर को गिराने की नौबत क्यो आई कहां से शुरू हुई बारूद लगाने की कहानी ? 

नोएडा की सेक्टर-93 में बनी सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 32 मंजिला ट्विन टावर को  ध्वस्त किया गया | लोगो का कहना है जिसकी लागत 200 करोड़ से ज्यादा की थी उसे  गिराने में करीब 20 करोड़ का खर्च किया गया |

सब कुछ ठीक है सवाल ये उठ रहा है कि आखिर इन टावर्स को गिराया क्यों गया ? अर्थात अनियमितता ( irregularity ) तरीके से  बनी 32 मंजिल की इमारत खड़ी कैसे हो गई? बिल्डर ने नियमों का कैसे उलंघन किया? नोएडा अथॉरिटी के अधिकारी कही मिठाई तो नहीं खा रहे थे?  नीचे पढ़िये विस्तार से

क्या अधिकारी मिठाई खा रहे थे? 32 मंजिल की इमारत खड़ी कैसे हो गई?

इस कहानी को समझने के लिए  23 नंवबर 2004 से शुरू करते है। जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए दिया था। उस आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल तक मकान बनाने की अनुमति मिली थी। फिर दो साल बाद 29 दिसंबर 2006 को अनुमति में संसोधन कर दिया गया। संसोधन नोएडा अथॉरिटी ने किया उसके बाद सुपरटेक को नौ मंजिल की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति मिली। इसके बाद अथॉरिटी ने टावर बनाने की संख्या में भी बढ़ोतरी कर दिया। पहले 14 टावर बनने थे, फीर उन्हे  बढ़ाकर पहले 15 फिर इन्हें 16 कर दिया । उसके बाद 2009 में  फिर से बढ़ोतरी की गई, और 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने  के लिए रूप रेखा तैयार की।

दो मार्च 2012 को टावर 16 और 17 के लिए एफआर में फिर बदलाव किया। इस संशोधन के बाद इन दोनों टावर को 40 मंज़िला  तक करने की अनुमति मिल गई। इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। दोनों टावर के बीच की दूरी महज नौ मीटर रखी गई। जबकि, नियम के मुताबिक दो टावरों के बीच की ये दूरी कम से कम 16 मीटर होनी चाहिए।

अनुमति मिलने के बाद सुपरटेक ने एक टावर में 32  तथा दूसरे में 29 मंजिल तक का निर्माण भी पूरा कर दिया। निर्माण होने के बाद मामला कोर्ट पहुंचा और ऐसा पहुंचा कि टावर बनाने में हुए भ्रष्टाचार की कीताबे  एक के बाद एक खुलती गईं। और खुली ऐसी की आज इन टावरों को  मलबे का रूप लेना पड़ा ।

 

आइये जानते है  कैसे कोर्ट पहुंचा मामला?

फ्लैट को खरीदने वालों ने 2009 में आरडब्ल्यू बनाया। इसी आरडब्ल्यू ने सुपरटेक के खिलाफ कानूनी जंग की शुरुआत की। ट्विन टावर के अवैध निर्माण को लेकर आरडब्ल्यू ने पहले नोएडा अथॉरिटी मे गुहार लगाई। अथॉरिटी में कोई सुनवाई नहीं होने के कारण  आरडब्ल्यू इलाहाबाद  हाईकोर्ट की घंटी बजाई |

फिर क्या था 2014 में हाईकोर्ट ने ट्विन टावर तोड़ने का आदेश जारी किया, आज नतीजा सामने है | शुरुआती जांच में नोएडा अथॉरिटी के करीब 15 अधिकारी और कर्मचारी दोषी माने गए। इसके बाद एक हाई लेवल जांच कमेटी ने मामले की पूरी जांच की। इसकी जांच रिपोर्ट के बाद अथॉरिटी के 24 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।

 

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